Friday, 7 February 2025

हैदराबादी हिंदी

(हैदराबादी हिंदी):
दोन दिन के वास्ते महाराष्ट्र में आई थी, बहन के घर उदगीर में, पूरे परिवार के साथ। बहुत साल हो गए थे, किसी भी त्योहार या मौके पे मायके आना हुआ ही नहीं। इस बार संक्रांति के बाद का समय था। मस्त दहाले, बोर, वटाने वगैरा रान मेवा का मज़ा लिया। खास लेकी (बेटी) के लिए उसका फेवरेट पाक भी मंगवाया।

अम्मा को भी बहन के घर बुलवा लिया था। हम तीनों  (मायलेकी) मां-बेटियां) मिल गए तो फिर, "दूसरा जाये भाड़ में," गप्पों की महफिल चालू हो गई। मियां (पति) हमको छोड़कर घूमने निकल गए, बच्चे छोटे भाई के साथ मस्ती में बिजी थे।

हमारी बातें चलती गईं और दिन कब रात में बदल गया, पता ही नहीं चला। मियां का फोन आया, पर मायके में कौन फोन की तरफ देखता है? 10-12 मिस कॉल के बाद ध्यान आया कि फोन बज रहा है।

फोन उठाया:
मैं: "हैलो, कहां हो अजी?"
वो: "अरे, कौन सी गली में है घर?"
मैं: "सुबह तो छोड़कर गए थे हमें।"
वो: "समझ नहीं आ रहा, घर कहां है। बाहर आकर देखो।"
मैं: "बालकनी में आई, आप तो दिख नहीं रहे।"
वो: "अरेरे, जहां गली में फैशन शो चल रहा है, वहीं होगा घर। औरतें ही औरतें दिख रही हैं!"
मैं: "परेशान ना करो, कौन गली में फैशन शो रखता? देखती हूं जरा।"

गली में जाकर देखा तो सच में सजावट बड़ी जबरदस्त थी। फूल, गुब्बारे, सबकुछ। कुछ औरतें आ-जा रही थीं । 
 मैंने कहा, "तुम भी गाड़ी वहीं रोककर रैंप वॉक करते हुए आओ!"

लेकिन पास से देखा तो फैशन शो नहीं था। ये तो हळदी-कुंकू का प्रोग्राम था। औरतें कुर्सियों पे बैठी थीं, उन्हें हळदी-कुंकू लगाया जा रहा था। पर मेरे मियां को वो फैशन शो दिखा!

मन वहीं रुक गया। संक्रांति के दिन मम्मी मंदिर जाती थी। पूरे गांव में वाण की पोटली लेकर हम  उनके पिछे घुमतै थै  । मिले हुये वाण कै बैर किसके खैत कै है यह अंदाज लगातै थै ...जो सामान गिफ्ट मै मिलता था उसके लिये लढाई 
 होती कि किसको ज़्यादा मिला बोलके।

इतने में मियां बोले, "चलो पागल, तुम्हें भी फैशन शो में जाना है क्या?"
मैं हंसते हुए बोली, "इसे हळदी-कुंकू कहते हैं, जो महाराष्ट्र में संक्रांति के बाद करते हैं।"

घर वापस आए। सच में, अब ये पारंपरिक हळदी-कुंकू भी फैशन शो बन गया। ऐसा ही लगा

- .....एक महाराष्ट्र की बेटी,  Suraj Kumari Goswami हैद्राबाद
मैमरि
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