Wednesday, 7 March 2018
डर
डर
बेपरदा होकर जीना चाहती हूं मै
नहीं लगता डर मुझे किसी जुल्म से
खुदकी रौशनी बनना चाहती हू मै
नही लगता डर मुझे कोई अंधेरे से
आंजाद पंछी बनकर जीना चाहती हू मै
नही लगता डर मूझे खुले आसमान से
सूरजकी रोशनीसी छा जाना चाहती हू मै
नही लगता डर मूझे खौफभरी रातों से
बेखौप होकर जीना चाहती हुं मै
नही लगता डर ईंसानके शक्लके शैतान से
ऊडने की चाहत रखी हे मैने
फिर क्यो काटू पंखोंको अपने
नीडर तो तभी हो गयी मै
जब देखे हौंसलो भरे सपने
अब ना रूकेगी ये चाहे
बिछे हो काटे राहों में
अब ना सिमटेगी ये चाहे
गर मुश्किले भी हो जिंदगी मे
..©® *सुरजकुमारी* *गौस्वामी...हैद्राबाद*
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