Sunday, 1 January 2017

अनाथ

हे भगवान ,क्या जनम लिया हमने बेजान इन्सान की बस्ती मे , रोज मरते है,हम यहा हमारी बस्ती में ....., रोशनाईयों से झगमगते है ,मंदीर मज्जित यहा, हमारे नशिब मे देख ,यहां निवाला भि कहां ...! अरे पत्थर के मंदिर मज्जित कि शान , यहां अमीर के कुत्तो के भि होते है मकान.....! हमारे नशिब में कचरे का ढेर है , जूते लाखो के अमीर के , हमेतो खाना ही ढूंडना पडता है कचरे की डेर से..! कपडे तो दूर कि बात, हमारे सर पे नही मां बाप का हात, इन्सान है हजारो यहां,अमीर गरिबी भेद होता है,यहां यह मेरा हिंदुस्तान महान अमीरो कि अमीरी स्वर्ग की तरह गरिबो कि गरिबी नर्क कि तरह यहां तो मंदिर भि सोने के है, तुझे क्या परवाह भले हमारी यहां! तु पत्थर का भगवान है फिर भि तेरी यहां शान है, आज भी इस देश में पत्थर ही भगवान है , हम तो जिये जागते इन्सान ना परवाह किसे ,हमारी फिकर नशिब में हमारे, साया मां बाप का साथ भगवान का, हमारा होसला बुलंद है,हम मजबूर है पर पत्थर नही आसमान हमारा घर है,धरती हमारी मातां, जिना हमे अपने हौसले से आता है! मजदूरी करेंगे पर भिक नही मांगेगे कल कुछ बनके अनाथो का सहारा बनेंगे. .........सुरजकुमारी गोस्वामी,..हैद्राबाद Shared with https://goo.gl/9IgP7

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